ये चमगाद़ड यहां कब से हैं, इसकी सही जानकारी किसी को भी नहीं है। सरसई पंचायत के सरपंच और प्रदेश सरपंच संघ के अध्यक्ष अमोद कुमार निराला आईएएनएस को बताते हैं कि गांव के एक प्राचीन तालाब (सरोवर) के पास लगे पीपल, सेमर तथा बथुआ के पे़डों पर ये चमगाद़ड बसेरा बना चुके हैं।
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उन्होंने बताया कि रात में गांव के बाहर किसी भी व्यक्ति के तालाब के पास जाने के बाद ये चमगाद़ड चिल्लाने लगते हैं, जबकि गांव का कोई भी व्यक्ति जाने के बाद चमगाद़ड कुछ नहीं करते। उन्होंने दावा किया कि यहां कुछ चमगाद़डों का वजन पांच किलोग्राम तक है। गांव के लोग न केवल इनकी पूजा करते हैं, बल्कि इन चमगाद़डों की सुरक्षा भी करते हैं।
यहां के ग्रामीणों का शुभ कार्य इन चमगाद़डों की पूजा के बगैर पूरा नहीं माना जाता। जनश्रुतियों के मुताबिक, मध्यकाल में वैशाली में महामारी फैली थी, जिस कारण ब़डी संख्या में लोगों की जान गई थी। इसी दौरान ब़डी संख्या में यहां चमगाद़ड आए और फिर ये यहीं के होकर रह गए। इसके बाद से यहां किसी प्रकार की महामारी कभी नहीं आई।
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