सिसवा बाजार से पश्चिम की तरफ 2 किलोमीटर दूर ग्रामसभा बेलवा चौधरी गांव में पिछले सैकड़ों सालों से यह परावन की परंपरा हर तीसरे साल बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनायी जाती है, सूर्य निकलने से पहले ही गांव के हर घरों में ताले लग जाते हैं और सभी लोग गांव से बाहर निकल पड़ते हैं और खेतों व बगीचों में अपना पड़ाव डालकर पूरे दिन वहीं रहते हैं, अगर एक दिन पहले नई नवेली दुल्हन आयी है वह भी घर से बाहर चली जाती है, इस दौरान पशुओ को भी लोग अपने साथ रखते हैं, गांव की गलियां पूरी तरह सुनी हो जाती है, गांव में रहने वाले हिंदू मुस्लिम छोटे बड़े सभी एक साथ गांव को छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं और इस परंपरा का निर्वहन करते हैं, यह परंपरा सरको सालों से चली आ रही है।
इस परावन के पीछे जो दंतकथा है उसके अनुसार कुछ साधु गांव में आए हुए थे और लोगों से खाना बनाने की लकड़ियां मांगे लेकिन किसी ने उन्हें लकड़ियां नहीं उपलब्ध कराई, ऐसे में वह फसलों की मड़ाई करने वाली मेह को जलाकर भोजन बना लिए, गांव वालों ने जब इसका विरोध किया तो साधुओं ने कहा कि आज के बाद इस गांव में मड़ाई के लिए मेह की जरूरत नहीं पड़ेगी तभी से इस गांव में मड़ाई करते समय बालों को मेह की आवश्यकता नहीं पड़ती है और बैल स्वयं गोल गोल घूमते रहते हैं।
इस के साथ साधुओं ने यह भी कहा कि हर तीसरे साल बुद्ध पूर्णिमा के रोज आप लोग गांव खाली कर दीजिएगा, नहीं खाली करने पर अनहोनी हो सकती है, इसी परंपरा का निर्वहन आज भी गांव के लोग करते चले आ रहे हैं, वहीं कुछ युवा पीढ़ी के लोगों का मानना है कि पहले प्लेग जैसी तमाम बीमारियां होती थी कि गांव का गांव इसकी चपेट में आ जाता था, ऐसे में उन बीमारियों से बचने के लिए गांव खाली करने की परंपरा रही होगी जो आज भी परावन के रूप में जारी है।
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