कोरोना वायरस से बचने के लिये बस्तर के कुछ इलाकों में आदिवासियों ने साल के पत्तों का ही मास्क बनाकर उसका उपयोग करना शुरू कर दिया है। असल में कांकेर जिले के अंतागढ़ के कुछ गांवों में जब एक बैठक बुलाई गई तो आदिवासी वहां पत्तों से बनाई गई मास्क पहनकर पहुंच गये। भर्रीटोला गांव के एक नौजवान ने बताया, 'कोरोना के बारे में गांव के लोगों ने सुना तो दहशत में आ गए। हमारे पास कोई और उपाय नहीं था। गांव वालों के पास तो मास्क है नहीं। इसलिए हमारे गांव के लोग अगर घरों से बाहर निकल रहे हैं तो वे सरई के पत्तों वाले मास्क का उपयोग कर रहे हैं।'
गांव के पटेल मेघनाथ हिडको का कहना था कि हमें कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो लगा कि खुद ही उपाय करना पड़ेगा क्योंकि गांव से आसपास के सारे इलाके बहुत दूर हैं। इसके अलावा इस माओवाद प्रभावित इलाके में आना-जाना भी बहुत आसान नहीं है।
एक चैनल के लिए काम करने वाले जीवानंद हल्दर ने इन इलाकों में रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि पत्ते से बना मास्क एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंच रहा है। उन्होंने कहा, 'आदिवासियों को इस तरह के मास्क पहने देखना मेरे लिए नया अनुभव था।
एक गांव के लोग मास्क का उपयोग कर रहे हैं तो दूसरे गांव के लोग भी उसकी देखा-देखी पत्तों का मास्क लगाने लग गए हैं। आदिवासी एक दिन इसका उपयोग करते हैं और अगले दिन नया मास्क बना लेते हैं।' हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि इस तरह के मास्क एक हद तक तो बचाव करते हैं लेकिन इसमें सांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है।
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